Wednesday 26 February 2014

सब गुज़र जायेगा

कुछ खामोश हो गया है अंदाज़ अपना
के खुद से भी बात करने को हम वक़्त नहीं निकालते

हम इतने खुदगर्ज़ हो जायेंगे सोचा ना था
और तुम इस बात पे खफ़ा हो के तुमसे बात किये एक अरसा हो गया

कुछ ख़तम सा हो गया है खुद में ही
मेरे अन्दर का शायर, शायद मर चुका है


न ही कोई ख़याल आता है अब ज़हन में
जिसे हम हू ब हू कागज़ पे उतार लें

खामोश है कलम, कागज़ भी कोरा है 
वो सियाही भी ख़तम नही होती है

बस कुछ बेचैनी सी होती है कभी-कभी
कुछ कशमकश सी महसूस होती है

और सांस लेना भी मुश्किल सा लगने लगता है

जब चाह कर भी एहसासों को शब्द नहीं मिलते

अब वो शायर अपनी अंतिम साँसें गिनता है

जाने कब गुज़र जायेगा

मेरा एक ही तो राज़दार है वो
पर मुझमें ही ख़तम हो जायेगा


फिर ना जाने कौन सुनेगा ग़म मेरे
कौन उनको समझेगा


और धीरे धीरे सब गुज़र जायेगा ll