Monday 16 June 2014

Fir wahi samandar tha..

Fir wahi samandar tha,
Magar mai khud ko kuch badla hua sa mehsus kar rahi thi..

Wahi lehrein thi,
Samandar mei bhi aur mujhmei bhi fir bhi kuch anjaan si mujhko lag rahi thi..


Ankhon ki nami kuch us badlaav ke liye thi,
Kuch wo jo pal beet gaya sada ke liye uske liye thi..

Wo pal jo laut ke ab kabhi nhi aa payenge,
Wo pal jo tere kareeb baith ke maine yun hi ganva diye the ab sirf humko rulayenge..

Mai yunhi dekh rahi thi oonchi oonchi uthti lehron ko,
Aur soch rahi thi ke baha le jaye mujhe aur meri khaamoshi ko..

Meri aakhiri khwaish bass itni si hai 'Meen'...
Marne ke bad mujhe jalana nhi bs baha dena isi samandar mei...




Sunday 8 June 2014

501 वाली मैडम!!

पहले जब मैं छोटी थी
तब सरकारी कॉलोनी में रहती थी
कॉलोनी के सब लोग जानते थे..
के ए ब्लाक 22 नंबर के घर में रहती हूँ मैं
वो जोशी जी की लड़की है

तब लगता था के कोई शैतानी कर दी
तो आ जायेंगे सब घर पर शिकायत ले के
सोचती थी क्यों ऐसी जगह रहती हूँ
जहाँ सब जानते हैं मुझे
हुह!! ठीक से मस्ती भी नहीं कर सकती

और अब जहाँ रहती हूँ ..

पाँचवे माले पे चार फ्लैट हैं
मगर पता नहीं मुझे के कौन हैं
नाम पता हैं नाम प्लेट्स पे पढ़ा है
मगर जानती किसी को नहीं हूँ
कभी बीमार भी पड़ती हूँ तो किसी को बुला भी नही सकती
शायद कोई आएगा भी नहीं
कोई जानता ही नही
तब दूर रहने वाली एक दोस्त को बुला लेती हूँ

अब सोचती हूँ,
शायद इसीलिए पापा सरकारी कॉलोनी में रहते थे
कम से कम लोग मदद के लिए तो खड़े रहते थे
मम्मी जब बीमार होती थी
तो बगल वाली आंटी रात भर उनके बगल में बैठी रहती थीं
और दीदी हम लोगों के पास
छोटे ही तो थे हम तीनों

अब तो बस लोग मुझे फ्लैट नंबर से जानते हैं

आप 501 वाली मैडम हैं न!!

Wednesday 4 June 2014

दरवाज़ा

वो दरवाज़ा हमेशा खुला रहता था,
कभी बंद नहीं करते थे वो लोग,
उन्हें शायद किसी चीज़ के खोने का डर ही नहीं था..
या शायद कुछ था ही नहीं उस घर में चोरी करने लायक
ना सामान,
ना जवाहरात,
ना रिश्ते,
ना संवेदनाएं !!!