Thursday 25 August 2016

मेज़

मेरे दिल के एक कोने में मेरे कमरे के कोने जैसे एक मेज़ है
जिसपे मेरी पुरानी यादों के कागज़ पड़े रहते हैं

खिड़की से जब वक़्त की हवा चलती है तो मैं
सूखे फूलों के गुलदान के नीचे उनको दबा देती हूँ

वरना पूरे कमरे में यादें बिखर जाती हैं
एक एक करके उन पन्नों को उठाने में
मैं खुद कतरा कतरा बिखर जाती हूँ , बेहिस ही लौट जाती हूँ उन पलों में

किसी रोज़ वो मेज़ से सारी यादों के पन्ने हटा दूँगी
और बहा दूँगी समंदर में जिसके किनारे बैठ के तुमसे हमेशा साथ रहने का वादा किया था


वो कोने की मेज़ अब खाली ही रहती है , गुलदान के फूल
और भी सूख गए हैं , पत्तियां  भी झड़ गयी हैं
बस सूखी सी टहनियां बची हैं किसी छूने से वो भी टूट जाएगी। 

Thursday 18 August 2016

Gulzar - गुलज़ार

गुलज़ार

ये सिर्फ नाम नहीं है।
जज़्बातों का सैलाब है।

जब कभी उनकी कवितायेँ , कहानियां , गीत पढ़ती या सुनती हूँ, तो लगता है कोई ऐसा कैसे सोच सकता है

कोई गीत पहली बार सुन के ही  लग जाता है के ये और कोई नही लिख सकता सिवाए गुलज़ार के।

गुलज़ार एक कवि या लेखक नही हैं वो खुद में ही साहित्य का एक विद्यालय हैं

कितना कुछ है सीखने को।

उनकी आवाज़ और शब्दों में इतनी पाकीज़गी है के जैसे लगता है कोई धर्मग्रन्थ पढ़ रहे हैं...

उनकी कुछ पंक्तियाँ आज उनके जन्मदिन पे पेश हैं..
किसी क्रम में नहीं, जो जिस क्रम में मेरे दिमाग में आती हैं मैं लिखती हूँ...

' बीच आसमान में था, बात करते करते ही
चाँद इस तरह बुझा जैसे फूँक से दिया
 देखो तुम..... इतनी लंबी सांस मत लिया करो!'

' नए नए चाँद पे रहने आये थे , हवा न पानी , गर्द न कूड़ा
न कोई आवाज़ न हरकत ,
चलते हैं ... जो भी घुटन है , जैसी भी हो, चल के ज़मीन पर रहते हैं '

'इस कदर सख़्त हैं, बेहिस हैं, रवायत के पत्थर
जां चली जाये मगर जान छुड़ाना बड़ा मुश्किल है यहाँ '


' दफ़न कर दो हमें के सांस मिले , नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है
आज फिर आपकी कमी सी है '

'जिसका भी चेहरा छीला अंदर से और निकला '

'कभी ज़िन्दगी से माँगा पिंजरे में चाँद ला दो ,
कभी लालटेन देके कहा आसमाँ पे टांगो "

'ओट में छुप के देख रहे थे चाँद के पीछे पीछे थे,
सारा जहाँ देखा , देखा न आँखों में, पलकों के नीचे थे'

गुलज़ार साहब हम आपकी  लंबी और सेहतमंद उम्र की दुआ करते हैं

जन्मदिन मुबारक...