कुछ खामोश हो गया है अंदाज़ अपना
के खुद से भी बात करने को हम वक़्त नहीं निकालते
हम इतने खुदगर्ज़ हो जायेंगे सोचा ना था
और तुम इस बात पे खफ़ा हो के तुमसे बात किये एक अरसा हो गया
कुछ ख़तम सा हो गया है खुद में ही
मेरे अन्दर का शायर, शायद मर चुका है
न ही कोई ख़याल आता है अब ज़हन में
जिसे हम हू ब हू कागज़ पे उतार लें
खामोश है कलम, कागज़ भी कोरा है
वो सियाही भी ख़तम नही होती है
बस कुछ बेचैनी सी होती है कभी-कभी
कुछ कशमकश सी महसूस होती है
और सांस लेना भी मुश्किल सा लगने लगता है
जब चाह कर भी एहसासों को शब्द नहीं मिलते
अब वो शायर अपनी अंतिम साँसें गिनता है
जाने कब गुज़र जायेगा
मेरा एक ही तो राज़दार है वो
पर मुझमें ही ख़तम हो जायेगा
फिर ना जाने कौन सुनेगा ग़म मेरे
कौन उनको समझेगा
और धीरे धीरे सब गुज़र जायेगा ll
के खुद से भी बात करने को हम वक़्त नहीं निकालते
हम इतने खुदगर्ज़ हो जायेंगे सोचा ना था
और तुम इस बात पे खफ़ा हो के तुमसे बात किये एक अरसा हो गया
कुछ ख़तम सा हो गया है खुद में ही
मेरे अन्दर का शायर, शायद मर चुका है
न ही कोई ख़याल आता है अब ज़हन में
जिसे हम हू ब हू कागज़ पे उतार लें
खामोश है कलम, कागज़ भी कोरा है
वो सियाही भी ख़तम नही होती है
बस कुछ बेचैनी सी होती है कभी-कभी
कुछ कशमकश सी महसूस होती है
और सांस लेना भी मुश्किल सा लगने लगता है
जब चाह कर भी एहसासों को शब्द नहीं मिलते
अब वो शायर अपनी अंतिम साँसें गिनता है
जाने कब गुज़र जायेगा
मेरा एक ही तो राज़दार है वो
पर मुझमें ही ख़तम हो जायेगा
फिर ना जाने कौन सुनेगा ग़म मेरे
कौन उनको समझेगा
और धीरे धीरे सब गुज़र जायेगा ll