Thursday, 25 August 2016

मेज़

मेरे दिल के एक कोने में मेरे कमरे के कोने जैसे एक मेज़ है
जिसपे मेरी पुरानी यादों के कागज़ पड़े रहते हैं

खिड़की से जब वक़्त की हवा चलती है तो मैं
सूखे फूलों के गुलदान के नीचे उनको दबा देती हूँ

वरना पूरे कमरे में यादें बिखर जाती हैं
एक एक करके उन पन्नों को उठाने में
मैं खुद कतरा कतरा बिखर जाती हूँ , बेहिस ही लौट जाती हूँ उन पलों में

किसी रोज़ वो मेज़ से सारी यादों के पन्ने हटा दूँगी
और बहा दूँगी समंदर में जिसके किनारे बैठ के तुमसे हमेशा साथ रहने का वादा किया था


वो कोने की मेज़ अब खाली ही रहती है , गुलदान के फूल
और भी सूख गए हैं , पत्तियां  भी झड़ गयी हैं
बस सूखी सी टहनियां बची हैं किसी छूने से वो भी टूट जाएगी। 

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