चारों तरफ घना अँधेरा था
सन्नाटे को चीरती एक खामोशी फैली थी उस कमरे में
कुछ दिख नही रहा था
मगर महसूस किया जा सकता था
एक कोने में बैठा वो सोच रहा था
के अब करे तो क्या करे
कैसे इस कमरे से बाहर निकले
कैसे इस कमरे को रौशनी से भरे
कुछ सूझता नही था उसे
फिर सोचा के दरवाज़ा खोल दे
तो शायद अँधेरा दूर हो जायेगा
दरवाज़ा खोलते ही
और गहरे अँधेरे ने कमरे को घेर लिया
किसी और का दिखना तो दूर
खुद को देखना भी मुश्किल हो गया
बहुत अकेला सा महसूस कर रहा था वो
फिर भी एक रौशनी की तलाश में
वो डरता, काँपता आगे बढ़ने लगा
लेकिन हर अगला कदम से
उसे और गहरा अँधेरा महसूस हो रहा था
जैसे के फिर इस बार उस ने
गलत रास्ता चुन लिया हो
एक डर लिए दिल में वो बढ़ा जा रहा है
लेकिन जाने कितने अंधेरों में
और वो खोया जा रहा है
कभी लगता के
शायद अब रौशनी करीब है
लेकिन वो और अँधेरे में
तब्दील होती गयी
हर कदम पे
और गहराता अँधेरा था
हर कदम पे वो खुद को
खुद से थोड़ा और खोता गया
Beautiful....just beautiful
ReplyDeleteThank you.. more than just thank you :)
Delete