Tuesday 2 June 2015

तक़रार

उस रोज़ चाँद से झगड़ा हो गया था उसका 
अपने कमरे की खिड़की पर खड़े होके बहुत भला बुरा कहा उसने 
नोंच लिया चाँद के मुंह को 
इतने गुस्से में थी के चाँद के साथ बितायी पिछले रात में से एक लम्हा उठा के चाँद के ऊपर दे मारा 
सैकड़ों तारों में टूट के वो लम्हा पूरे आसमान में बिखर गया 
चाँद बेचारा चुपचाप उसकी बातें सुन रहा था 
वो रो रही थी तो प्रकाशों मील दूर से हाथ लम्बा करके 
उसके आंसू पोंछ रहा था 
चाँद को यूँ शांत और सहज देख के उसका गुस्सा और बढ़ गया 
और फिर चाँद को डांट दिया तुमको सब मज़ाक लगता है न 
सब आसान लगता है 
कभी मेरी जगह आ के देखो कितना मुश्किल है रोज़ खुद से लड़ना 
हर रोज़ न चाह के भी हंसना 
खुद के वज़ूद को दिन बा दिन कम होते देखना 
चाँद ने मुस्कुरा के उसको देखा 
उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों के बीच रखा 
उसकी पेशानी को चूम के बोला 
क्यों मैं तुमसे अलग हूँ क्या 
हर रोज़ थोड़ा थोड़ा काम होता हूँ 
और एक दिन गायब हो जा हूँ 
लेकिन मैं तो नहीं रोता 
क्योंकि पता है मुझे के मैं धीरे धीरे हर रोज़ थोड़ा थोड़ा फिर बढूंगा 
फिर पूरा हो जाऊंगा एक दिन 
फिर ज़ोर से उसको गले लगा के बोला 
हम दोनों एक ही जैसे हैं.. 
तुम बस खुश रहो 
एक दिन तुम भी पूरी हो जाओगी