Monday 29 July 2013

सफ़र

कितना अच्छा हो
के सफ़र ख़त्म ही ना हो

चलता ही चले
बढ़ता ही रहे ||

ना मंजिल का इंतज़ार
ना लम्बे रास्तों का डर
ना किसी के साथ की ज़रूरत
ना किसी से बिछड़ने की हकीक़त ||

चलती रहे गाड़ी
खिलती रहे वादी ||

तेज़ हवा बालों को सहलाए
धीरे धीरे पूरे तन को छू जाये ||

पार करते चलें नदी, शहर और गाँव
सफ़र बढ़ता रहे कभी थकने ना पाएं पाँव ||

दूर दिखे सूरज हो ढलता
पूरे नभ को अपने रंग में हो रंगता ||

लौटता सा दिखे पंछियों का दल
गिरता दिखे कहीं पेड़ से एक फल ||

इक ओर बच्चे झूमते हों बारिश में
कहीं इक बुज़ुर्ग हँसता सा दिखे चौपाल की चारपाई में ||

कच्छी सड़कों पे स्कूल जाते दिखे कुछ बच्चे
सड़कों पे टहलते से दिखे दो दिल सच्चे ||

जोड़ने कुछ और यादें
करने अपना सफ़र

चलते चलूँ
बढ़ते चलूँ ||

नयी राहों की तलाश में
नये सफ़र की आस में 

लिये नये सपने निगाहों में
समेटने नये पल बाँहों में

चलते चलूँ
बढ़ते चलूँ ||

किसी नये शहर को छूने
कुछ नये तज़ुरबे करने 

कभी नये लोगों को जानने
कभी पुराने दोस्तों से मिलने

चलते चलूँ
बढ़ते चलूँ ||

खुला आसमान हो हाथों में
अपनी ही ज़मीन हो पांव में
देखने ज़िन्दगी के नये रंग

बस चलते चलूँ
बढ़ते चलूँ ||

चलते चलूँ
बस बढ़ते चलूँ ||


5 comments:

  1. thoda sa aur hona tha... bki i wud say nice...

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    1. hmm.. safar chalta rahega.. thoda sa aur badhta rahega.. i agree with you mujhe bhi kuch kam lag raha tha.. baki i would say thank you :)

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