Tuesday 30 July 2013

दो दीवाने शहर में

दर दर भटकते रहे वो दोनों
कभी इस गली कभी उस गली
कभी फिर पहली गली से होते हुए अगली गली में मुड़ जाते

एक दरवाज़े का ताला खुलवाते
झांकते उन खाली कमरों में
खिड़की , रोशनदान , किचन पर नज़र डालते
कुछ आपस में बात करते, और फिर अगले घर को बढ़ जाते

हर खाली घर को अपने सपनों के घर जैसा सजा लेते वो पल भर में
यहाँ बिस्तर लगा देंगे, यहां मेंज़ रख देंगे
इस कोने में तुम्हारा fav. गुलदान सजा देंगे
बाल्कनी में बैठ कर खूब बात करेंगे
मेरी आराम कुर्सी पर तुम मेरी गोद में बैठ जाना
मेरे कंधे पर अपना सर रख देना
और अपने हाथों से मुझे कमर के पास पकड़ लेना
मैं तुम्हारे बालों को सहलाऊंगा और तुम यूँहीं सो जाना

एक आवाज़ से दोनों चौंक जाते हैं, सर देख लिया क्या?चलें?

और सोचते हैं दोनों,
हाँ! यहीं हमारा घर बसाएंगे

किराए का ही सही, यहीं अपने सपनों का घर सजाएंगे॥

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